जमशेदपुर: मेटाओर रिसाइक्लिंग कंपनी, कोलकाता ने ई-वेस्ट रिसाइक्लिंग प्लांट स्थापित करने हेतु राष्ट्रिय धातुकर्म प्रयोगशाला से टेक्नोलॉजिकल डेमो एवं लाइसेंस लिया।
ज्ञात हो इसी वर्ष 5 मार्च २०२१ को मेटाओर रिसाइक्लिंग कंपनी, कोलकाता ने ई-वेस्ट रिसाइक्लिंग प्लांट स्थापित करने के लिए राष्ट्रिय धातुकर्म प्रयोगशाला से करार किया था। इससे पूर्व भी सीएसआईआर-एनएमएल द्वारा राष्ट्रीय और अन्तराष्ट्रीय स्तर पर ई-कचड़ा निस्पादन हेतु तकनीकों का स्थानांतरण किया जा चूका है। मेटाओर रिसाइक्लिंग प्राइवेट लिमिटेड, कोलकाता राष्ट्रिय धातुकर्म प्रयोगशाला द्वारा विकसित तकनीक से ई-कचड़ा प्रोसेसिंग कर कीमती एवं बहुमूल्य धातुओं के अलावा अन्य अधात्विक व्यावसायिक पदार्थों का निष्कर्षण करेगा।
अपने तरह का पहला रिसाइक्लिंग प्लान्ट है जो पूर्ण रूप से ई-वेस्ट के लिए बहुमूल्य तोहफा हैं कारण रिसाइक्लिंग ज़ीरो वेस्ट कोंसेप्ट पर कार्य करेगा।
तकनीकी पर्यावरण अनुकूल हैं एवं इसके सही निस्पादन से पर्यावरण स्वच्छ होगा, बेरोजगार युवकों को नौकरी मिलेगी एवं असंगठित इकाई संगठित होकर कचड़ा उठाव एवं निस्पादन इस प्लान्ट के द्वारा कर सकेंगे। मुनिसिपल इकाई भी इस कंपनी से संपर्क कर कचड़ा निस्पादन कर पाएंगे।
मेटाओर रिसाइक्लिंग कंपनी, कोलकाता खराब बैटरी की रिसाइक्लिंग एवं प्रिंटेड सर्किट बोर्ड को लेकर टेक्नालजी ट्रान्सफर करने का समझौता किया है। इस मौके पर एनएमएल जमशेदपुर के निदेशक डॉ. इंद्रनील चट्टोराज, परियोजना प्रमूख डॉ. मनीष कुमार झा, डॉ. झुमकी हैत, डॉ. रंजीत कुमार सिंह एवं टीम शोधार्थी डॉ. पंकज कुमार चौबे, सुश्री रेखा पांडा एवं श्री ओम शंकर दिनकर उपस्थित थे। इनके अलावा व्यापार प्रमूख डॉ. एसके पाल एवं डॉ. वीणा कुमारी ने एमओयू करवाने में अपना सहयोग किया। डॉ. अंजनी कुमार साहू ने ई-वेस्ट रिसाइक्लिंग के क्षेत्र में भारत मे भावी संभावनाओं पर प्रकाश डाला।
मेटाओर रिसाइक्लिंग कंपनी, कोलकाता के निदेशक श्री सौरभ रुंगटा ने कहा कि, अपने व्यापार को प्रगति करते हुए वर्तमान परिपेक्ष में जहाँ सीमित प्राकृतिक अयस्क है, ई-वेस्ट रिसाइक्लिंग की महत्ता को देखते हुए एनएमएल जमशेदपुर के साथ तकनिकी हस्तांतरण का करार किया है।
इस तकनिकी करार के तहत खराब हो चुकी लिथियम आयन मोबाइल बैटरी एवं इलेक्ट्रोनिक वेस्ट की रिसाइक्लिंग कर कॉपर, गोल्ड, कोबाल्ट, लिथियम, मैंगनीज, एल्यूमिनियम इत्यादि का निष्कर्षण किया जाएगा।
यह व्यापार बहुत ही महत्वपूर्ण है, कारण औद्योगिक ईकाइ बैठाकर आर्थिक आय के अलावा पर्यावरण भी स्वच्छ रखने में सहायक हैं।
ई-कचड़ा: पैसा ही पैसा यदि सही प्रबंधन हो
इलेक्ट्रोनिक क्रान्ति ने हमारे जीवन को सुख-सुविधाओं से परिपूर्ण कर दिया हैI विभिन्न इलेक्ट्रोनिक आविष्कारों के माध्यम से संचार-तंत्र को विस्तार एवं व्यावसायिक गतिविधियों को प्रोत्साहन मिलने के साथ-साथ रोजगार के अवसर भी बढ़े हैI परंतु आज अधिक संख्या में खराब होने वाली इन्ही इलेक्ट्रोनिक वस्तुओं के अम्बार ने “ई-कचड़ा” के रूप मे एक नई पर्यावरणीय समस्या को जन्म दिया हैI
“ई-कचड़ा” से तात्पर्य बेकार पड़े वैसे इलेक्ट्रोनिक उपकरणों से है, जो अपने उपयोग के उद्देश्य हेतु उपयुक्त नहीं रह जातेI
विकासशील देशों को सर्वाधिक सुरक्षित डम्पिंग ग्राउन्ड माने जाने के कारण भारत सरीखे देश ऐसे ई-कचडें के बढ़ते आयात से चिन्तित हैं। दुनिया के देशों में तेजी से बढ़ती इलेक्ट्रोनिक क्रान्ति से एक तरफ जहा आम लोगों की इस पर निर्भरता बढ़ती जा रही है। पर्यावरण के लिए खतरा और केंसर जैसी गंभीर बीमारियों का स्रोत बन रहे इस “ई-कचडें“ का भारत प्रमूख उपभोक्ता हैI
एक अनुमान के मुताबिक भारत में लगभग ८० करोड़ से ज्यादा मोबाइल फोन इस्तेमाल किए जा रहे है। ई-वेस्ट का प्रबंधन करने वाली कंपनियों का मानना है की किसी मोबाइल फोन को ९८ फीसदी रिसायकिल किया जा सकता है, उसी तरह कम्प्युटर की रिसाइक्लिंग भी इस तरह के नए उत्पादों को जन्म दे सकती है। मेमोरी डिवाइस, एमपी३ प्लेयर और आईपॉड ई-वेस्ट में निश्चित तौर पर इजाफा करते हैं।
मोबाइल फोन, लेपटोप, टेलीविज़न, फोटो-कोपिअर, फ़ैक्स मशीन, कैल्कुलेटर और कबाड़ बन चुके पुराने कम्प्युटरों के ई-वेस्ट भारी तबाही के तौर पर सामने आ रहे हैI मृदा प्रदूषण, जल एवं वायू प्रदूषण और अनेकानेक गम्भीर बीमारियां उत्पन्न हो रही हैंI
असगठित रूप से हो रहा है काम
ई-वेस्ट के निपटान में बड़े स्तर पर असंगठित रूप से काम हो रहा है। एक अनुमान के मुताबिक लगभग २५ हजार.