आदिवासी हो समुदाय के मागे पर्व पर उलीडीह के दिउरी राजा बिरुवा ने लाल मुर्गा का बलि दे कर पूजा अर्चना की

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जमशेदपुर : जमशेदपुर के उलीडीह में आदिवासी हो समुदाय का मागे पर्व समस्त पर्वों में से सर्वोपरि सर्वाधिक महत्वपूर्ण है उलीडीह के दिउरी (पुजारी) श्री राजा बिरुवा ने देशाउली (सरना स्थल)लाल मुर्गा का बलि दे कर पूजा अर्चना की ।आदिवासी हो समाज युवा महासभा स्थानीय समिति के अध्यक्ष राय सिंह बिरुवा ने कहा कि मागे पर्व की भी अपनी आस्था एवं मान्यताएं हैं! ‘हो’ समुदाय का मानना है कि जगत के सृष्टि सिंगबोंगा ( इष्ट देव) ने की है! सिंगबोंगा ने ही प्रकृति का निर्माण किया है जिसमें धरती जंगल ,नदी ,झरना, फल ,फूल, आदि का निर्माण किया है! ‘हो’ समुदाय के अनुसार लुकू हड़म – लुकू बुढी का सृष्टी किया है ! लुकू हड़म- लुकू बुढी (नर -नारी) ने मानव संतति का सृजन किया ! इन्होंने है इष्ट देव सिंगबोंगा की आराधना के रूप में मागे पूजा का प्रारंभ किया !
वस्तुतः ‘हो’ समुदाय प्रकृति का उपासक और पूजारक है! प्रकृति के निकट रहकर उनके संरक्षण में रहकर नित नए परिवर्तन को चमत्कारों को समीप से देखी है कृषि कार्य में जिस प्रकार प्रकृति का जीवन चक्र बिजपन,अंकुरण,परवलन,फलवित है ! उसी प्रकार मानव जीवन में नर नारी द्वारा प्रजनन, परिपालन,यौवन, वृद्धावस्था, फिर मृत्यु है यही आस्था यही सत्य ‘हो’ समुदाय ने अभीकृत किया! इसी जीवन को सत्यता की उपासना साधना ही मागे पूजा का उद्देश्य है और यह परम सत्य है कि प्रजनन अवयवों से ही जीवन अस्तित्व में आता है इसी से मानव जीवन का विस्तार है! ‘हो’ समुदाय इसी नव जीवनदायी कारक को परम पवित्र मानकर इसकी उपासना की यही मांगे पूजा का शब्दार्थ है यही वजह है कि देशाउली (जयरा स्थान) में दिऊरी (पुजारी) द्वारा पूजा के दौरान उपस्थित सभी सगा संबंधी माता-पिता भाई-बहन बेटा-बेटी निकलुष भावना से मनुष्य के प्रजनन अंगों का उदघोष करते हैं ! कहा जाता है कि मांगे पूजा के पद्धति ऐसा करने से ही पूर्ण होती है मागे पूजा आठ दिनों के अनुष्ठान है :-
1)अनादेर
2)गाऊमारा
3)ओतेइलि
4)हेःसकम
5)गुरीपोरोब
6)मारंग पोरोब
7)बासि मागे
8)हर बगेया
ओतेइलि के दिन से ही गांव मे गाना बजाना प्रारंभ हो जाता है और विधिवत यह दौर हर बगेया तक चलता रहता है! मांगे पर्व के दिन आज ग्राम वासी पूरी पुजारी के घर इकट्ठा होते हैं और वहां नाचते गाते उनको देशाली तक ले जाया जाता है जहां पर पुजारी अपना पूजा पाठ संपन्न करते हैं ग्रामवासी पुनः नाचते गाते हुए पुजारी के घर तक पहुंचाते हैं वहां पर मादल नगाड़ों की थाप पर सामूहिक नृत्य एंव गान होता है, तथा शाम को सभी ग्रामवासी अपने-अपने क्षेत्र में नाच अखाड़ा पर मागे पोरोब का सामूहिक नृत्य का आनंद लेते हैं!
‘हो’ भाषा मागे के संबंध में कहा जाता है किः-
मागे दो हाया- हिलांग,मेन्दो सिरजोम गोले!
मागे दो गोलंग-गमंग,नेयागे एटेड अंगीर !!
मागे दो जोठा-जोबरा नेयागे रिला-माला!
मागे दो वेलेंग-बेटेंग,नेयागे ओंवा-उसुर!!
नेया रांसा-लंदा नेयागे राअः हासू! हउ लोलो रेयाचः, हउ रोवा जीड्चः!!

इस मौके पर ग्राम दिऊरी राजा बिरूवा, संजय बिरूवा, कैलाश बिरूवा, सिंगराय हेबरोम, साधु बोदरा, रोशन, संजय हांसदा, संतोष कालुन्डिया बृज मोहन दास, लक्ष्मी गोटसोरा, सरस्वती कोडन्केल, रिया सामड़, काली चरण सामड़, रायसिंग बिरूवा, दुर्गा चरण बारी आदि मौजूद थे!

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