साहित्य अकादमी नई दिल्ली द्वारा साहित्य अकादमी अनुवाद पुरस्कार का घोषणा, संताली भाषा साहित्य में चंद्र मोहन किस्कू का नाम की घोषणा

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जमशेदपुर : आज साहित्य अकादमी नई दिल्ली द्वारा साहित्य अकादमी अनुवाद पुरस्कार का घोषणा कर दी गई है। जिसमें संताली भाषा साहित्य में चंद्र मोहन किस्कू का नाम की घोषणा की गई। तीन सदस्यी ज्यूरी कमिटी में बहुत ही नामचीन लेखक तथा अनुवादक  खेरवाड़ सोरेन, जोबा मुर्मू, सुन्दर मनोज हेम्ब्रोम सम्मिलित थे। चंद्र मोहन किस्कू ने महाश्वेता देवी कृत बांग्ला उपन्यास सिदू-कान्हुर डाके का संताली अनुवाद सिदू-कान्हू तिकिनाग होहोते पुस्तक के रूप में सांस्कृतिक संगम बनाने का कार्य किया है। जिसपर उसे वर्ष 2020 का अनुवाद पुरस्कार दिया जाने का घोषणा की गई। यह जानकारी मिलने पर ऑल इण्डिया संताली राईटर्स एशोसियेसन में काफी खुशयाली मनाई। श्री किस्कू ऑल इण्डिया संताली राईटर्स एशोसियेसन के केन्द्रीय शासी निकाय के सदस्य है। इसके लिए केन्द्रीय अध्यक्ष लक्ष्मण किस्कू, महासचिव रबिन्द्र नाथ मुर्मू , कोषाध्यक्ष मोहन चन्द्र बास्के, सहायक सचिव अंजली किस्कू, सहायक महासचिव- रामचंद्र टुडू व श्री मानसिंह माझी, भीम चरण मार्डी, सचिव स्वपना हेम्ब्रोम, सहायक सम्पादक गुहीराम किस्कू, अध्यक्ष, झारखण्ड शाखा  मानिक हांसदा, जमशेदपुर शाखा के अध्यक्ष वीर प्रताप मुर्मू, सचिव ताला टुडू तथा उपाध्यक्ष बाबुराम सोरेन आदि लोगों ने उसे मुबारकबाद दी। साथ ही साथ आज कमानी ऑडिटोरियम, नई दिल्ली में चंद्रशेखर कम्बार अध्यक्ष साहित्य अकादमी में साहित्य अकादमी पुरस्कार से ऑल इण्डिया संताली राईटर्स एशोसियेसन  के संस्थापक, संताली के महान लेखक एवं अनुवादक को साहित्य अकादमी पुरस्कार से नवाजे जाने पर ढेर सारा बधाई दी गई।

चंद्र मोहन किस्कू  का परिचय-

जन्म-22.02.1982

शिक्षा-  स्नातक

पिता –  बोरेन्द्र नाथ किस्कू सारा मुबारकबाद दिया गया.

माता-  बिमला किस्कू

प्रकाशित पुस्तकें –  हिंदी में (1)  सबरनाखा (2) फूलों की खेती (3)  एक आदिवासी लड़की (4)  महुआ चुनती आदिवासी लड़की (5)  प्रेम के गीत  (सभी कविता संग्रह )

(6)उसके जाने के बाद ( संताली से हिंदी अनुवाद मूल कवि श्याम सी टुडू )  (7)  मुर्गा पाड़ा तथा अन्य कवितायेँ (  संताली से हिंदी अनुवाद मूल कवि आनपा मार्डी )

संताली में -(1)मुलूज लाँदा (  कविता संग्रह );  (2)  फेसबुक (  कहानी संग्रह );(3)आंगरा ( मूल हिंदी कविता संग्रह आंगोर का संताली अनुवाद );(4)सिदू कान्हू तिकिनाग होहोते (  मूल बांग्ला उपन्यास सिदू कान्हुर डाके  का संताली अनुवाद );  (5)बिर बुरु रेयाग आईदारी (  मूल बांग्ला उपन्यास अरोन्येर अधिकार का संताली अनुवाद );  (6)  काहू को आर कालापानी (  मूल हिंदी कहानी संग्रह कव्वे और कालापानी का संताली अनुवाद )

अप्रकाशित पुस्तकें :-  संताली में (1)  हूल रेयाग सेंगेल जुलेना (  कविता ) ; (2) ओनोड़हें दो बांग काना (  कविता ) ;  (3)  हेड़ेम काशा (  कहानी ) ; (4)  बिर –  बुरु रेयाग सेचेद (  हिंदी कविता पुस्तक का अनुवाद ,मूल कवि महादेव टोप्पो);( 5)  जांगा लातार रेयाग हासा (  हिंदी कविता का संताली अनुवाद ,मूल कवि संतोष अलेक्स );(6)रेहेद रेयाग हासा (  हिंदी कविता का संताली अनुवाद मूल कवि जसिंता केरकेट्टा );(7)  अश्विनी कुमार पंकज की हिंदी कविता का संताली अनुवाद (8)  कोनजोगा (  हिंदी कविता का संताली अनुवाद ,मूल कवि वंदना टेटे)

चंद्र मोहन किस्कू हिंदी एवं संताली साहित्य का जाना माना नाम हैं। आपकी अनेको पुस्तकें साहित्य अकादमी से प्रकाशित हो चुकी हैं। जिनमे मुलुज लांदा (संताली कविता संग्रह) साहित्य अकादमी से प्रकाशित हो चुका हैं। इसके अतिरिक्त फेसबुक (संताली कहानी-संग्रह) तथा नया काव्य संग्रह फूलों की खेती जल्दी ही हमारे बीच होगा। यह कविता संग्रह हिन्दी भाषा में लिखा गया है। फूलों की खेती (कविता संग्रह) में आप झारखंड राज्य के सामाजिक ताने बाने को नज़दीक से समझ पाओगें। इस कविता संग्रह में आप आदिवासियों की समस्याओं एवं उनके सांस्कृतिक परिमंडल के बारे में जान पाओगें। साथ ही साथ फूलों की खेती (कविता संग्रह) में आप स्त्री विमर्श, प्रकति प्रेम, धार्मिक आडंबर, आधुनिक विकास के प्रभाव, उज्ज्वल भविष्य की आशा और उम्मीद तथा कवि दर्शन आदि महत्वपूर्ण विषयों पर कवि चंद्र मोहन किस्कू के दृष्टिकोण से मुखातिब हो पाएँगे। कवि मूलतः झारखंड की संताली जनजाति से सम्बंध रखते हैं तथा वहाँ पर पाए जाने वाले आदिवासी समुदाय को भलीभाँति जानते हैं। आदिवासी समुदाय की हर समस्या को उन्होंने करीब से देखा है। कवि अपनी रचनाओं के माध्यम से भी आदिवासी लोगो की समस्याओं को आमजन तक पहुँचाना चाहता है। फूलों की खेती (कविता संग्रह) में कवि चंद्र मोहन किस्कू ने अपनी रचनाओं ‘मेरी स्वप्न पर’, ‘हमारा खून’, ‘माओवादी नही हूँ’ तथा ‘कविता नही है यह’ आदि रचनाओं में आदिवासी समाज की समस्या को चित्रित किया है। फूलों की खेती (कविता संग्रह) में कवि चंद्र मोहन जी लिखते हैं- “मैं माओवादी नही हूँ /आतंकवादी का अर्थ मुझे मालूम नहीं / और चोरी तो खून में  ही नही है / तुम्हारी नज़र में यदि माओवादी हूँ, तो राम कैसे भगवान हुआ / वह भी तो जंगल में ही घर बनाया था / फल और कन्द मूल खा कर ही तो जिंदा था।”

आजादी के 65 साल बाद भी भारत के आदिवासी उपेक्षित, शोषित और पीड़ित नजर आते हैं। राजनीतिक पार्टियाँ और नेता आदिवासियों के उत्थान की बात तो करते हैं, लेकिन उस पर अमल नहीं करते। आदिवासी किसी राज्य या क्षेत्र विशेष में नहीं हैं, बल्कि पूरे देश में फैले हैं। ये कहीं नक्सलवाद से जूझ रहे हैं, तो कहीं अलगाववाद की आग में जल रहे हैं। जल, जंगल और जमीन को लेकर इनका शोषण निरंतर चला आ रहा है। कवि चंद्र मोहन किस्कू ने अपनी रचनाओं के माध्यम से आदिवासियों की लगभग हर समस्या पर सवाल उठाए हैं। कवि चंद्र मोहन किस्कू की रचनाओं में हम आदिवासियों की दैनिक समस्याओं जैसे घोर गरीबी, लाचारी, अशिक्षा, बेरोजगारी आदि समस्याओं के बारे में पढ़ सकते हैं। अपनी रचना हमारा खून में कवि लिखते हैं – “वे जमीन लूट रहे हैं / घर से बेदखल कर रहे हैं / जंगल से पेड़ कटने की आवाज़ लगातार आ रही हैं / अरे ओ विनाश के ठेकेदार, होशियार..पेड़ लताओं से निकल रहा है / हमारा ताजा खून।”

फूलों की खेती (कविता संग्रह) में कवि चंद्र मोहन किस्कू स्त्री की लगभग हर समस्या पर अपनी लेखनी के माध्यम से सवाल उठाते हैं। उनकी रचनाएँ जैसे नारी की पुकार, मलाला के लिए, अब भी, हम औरते, लड़की गरीब घर की तथा मैं जिंदा रहूँगी आदि में हम स्त्री समस्याओं पर कवि की तीखी आलोचना से परिचित होंगें। आये दिन हो रही बलात्कार जैसी शर्मशार कर देने वाली घटना पर कवि ने दामिनी की याद में एक रचना ‘मैं जिंदा रहूँगी’ में अपने भाव उजागर किये हैं- मैं जिंदा रहूँगी / तुम्हारी आँखों के दोनों कोनों में / दया दर्द के आँसू बनकर / मैं जिंदा रहूँगी / तुम्हारी  बन्द मुट्ठी में / अत्याचार के खिलाफ लड़ाई में / सहयोग देकर”।

कवि अपनी अन्य रचनाओं में गरीब लड़कियों की स्थिति का चित्रण करते हैं और बताते हैं कि कैसे आदिवासी लड़कियां अपनी पढ़ाई को जारी रखने के लिए दिहाड़ी मजदूरी करने के लिए मजबूर हैं। कैसे उनके स्वप्न अधूरे रह जाते हैं और उन्हें पूरा करने के लिए वो मासूम बच्चियों कैसे-कैसे समझौते करती हैं अपनी देह से।

फूलों की खेती (कविता संग्रह) में कवि चंद्र मोहन किस्कू ने प्रकृति से आदिवासी समुदाय के अटल प्रेम को भी अपनी रचनाओं वक्त तो हैं, सबरनखा, चिट्ठी आदि में चित्रित किया है। कवि प्रकृति विनाश पर अपनी प्रतिक्रिया इस प्रकार से रखते हैं- “तुम्हे शर्म महसूस होगी / जब वह जिद पकड़ेगा / पहाड़ पर चढ़ने की / देखना चाहेंगा हरा पेड़ / खुले में सांस लेना चाहेगा”। उनकी रचना ‘वक्त तो है’ में कवि प्रकति विनाश को लेकर जब भविष्य में आने वाली हमारी पीढ़िया हमसे कैसे-कैसे सवाल पूछेगी, उस पर आमजन के ध्यान आकर्षित कराना चाहता है।

अपने कविता संग्रह में कवि चंद्र मोहन किस्कू अपनी रचना गरीब आदमी और धर्म के नाम पर अधर्म में धार्मिक आडम्बरों पर खुले मन से कटाक्ष करता है तथा कर्म को श्रेष्ठ बताता है।

फूलों की खेती (कविता संग्रह) में कवि चंद्र मोहन किस्कू अपनी रचनाओं में औधोगिक विकास के कारण उत्पन्न हो रही समस्याओं का चित्रण भी करता है। उनकी रचनाएँ बौद्ध की हँसी, नगर, समाज किधर जा रही हैं और घर आदि में कवि वर्तमान में निर्मित सामाजिक परिदृश्य का वर्णन करता है-  “नगर की चौड़ी सड़कों और तंग गलियों में / टहलते समय फँस सकते हो / वहाँ की तंग दिल की काली गलियों में”।

कवि किस्कू जी अपनी रचना ‘झारखंड रो रहा है’ में झारखंड के बदलते स्वरूप का चित्रण बखूबी करते हैं। प्राचीन और नवीन झारखंड के वर्णन करते हुए लिखते हैं- रो रहे हैं पहाड़ / रो रही हैं नदी / रो रहे हैं झारखंड के जीवंत झरने / अब झारखंड के पहाड़ों पर पेड़ घना नही / नदी नालों में पानी नही है / जीवंत झरना तो किसी की बुरी नज़र से सुख गया है”।

चंद्र मोहन किस्कू जी का कविता संग्रह फूलों की खेती देश मे सामाजिक परिवर्तन लाने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। उनकी रचनाएँ अनेकों असहाय लोगों की आवाज के रूप में अपने पक्ष को दुनिया के सामने रखेंगी। भोको की माँ जैसी अन्य असहाय माँ भी उनकी लेखनी के माध्यम से अपने दर्दो को लोगो से साझा कर पायेगी। मैं आपकी पुस्तक फूलों की खेती (कविता संग्रह) के सफल प्रकाशन पर आपको बधाई देता हूँ और आशा करता हूँ कि आप हमेशा गरीब, मज़लूमों की आवाज़ अपनी लेखनी से बुलंद करोगें। आपकी पुस्तक एक शोषण रहित समाज के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाये, इन्ही शुभकामनाओ के साथ आपको पुनः बधाई।

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