अरे मोरी मैया”, ” माय गे माय”, “अम्मा” इत्यादि शब्द अस्कमात ही निकल जाते हैं जब हम किसी परेशानी में होते हैं। हो भी क्यों ना जब पुरे संसार में एक ही तो है जिन पर हमें अटूट विश्वास है की वो हमारी समस्या का हल ले कर ज़रूर आएगी। संतान जब मीलो दूर अपने माँ का सस्मरण करता है तो भी माँ का ह्रदय काँप उठता है। यह भी सत्य है की माँ का हृदय होता ही है कुछ ऐसा। दुर्गा शप्तशती के अंदर दुर्गा क्षमा प्रार्थना का एक अंश जो माँ के वास्तविक चरित्र से परिचय करता है
” कुपुत्रो जायेत क्वचिदपि कुमाता न भवति “, अर्थात पुत्र कुपुत्र हो सकता है पर माता कभी कुमाता नहीं होती
वैसे तो हर दिन माँ का दिन है पर पाश्चातय जगत वालो ने अपनी अपनी माँ के लिए एक खास दिन घोसित किया हुआ है जिसे वो ” मदर्स डे ” कह कर बुलाते हैं। पाश्चातय जगत के इस रीत को भी हमने ठीक वैसे ही अपना लिया जैसे बांकी सभी रीति रिवाजो को। आज के दिन सोशल मीडिया पर लोग आज के दिन भर- भर के अपनी माँ के साथ ली गयी सेल्फी में अपनी माँ की ममता का बखान करते हैं पर ताज्जुब है की माँ की असीम ममता का भान तो दुनिया को है ही पर शायद संतान होने का कर्तव्य का भान नहीं है।
एक रिपोर्ट के अनुसार आज भारत में डेढ़ करोड़ बुजुर्ग लोग अकेले रहते हैं। इनमें से कई वृधावास गृह में अपना जीवन व्यतीत करते है। इस डेढ़ करोड़ की आबादी में सबसे ज्यादा महिलाएं हैं , ऐसी महिलाएं जिसका संतान उससे प्रेम तो करता है पर उसे अपने साथ रखने से हिचकता है। माँ बचपन में अपने पुत्र की हर सही गलत जिद्द को पूरा करती है, खुद भूखी रह कर अपनी संतान को खिलाती है और जब संतान बड़ा हो जाता है तो अपनी पत्नी के साथ माँ से दूर रहना पसंद करता है। यह महज एक इल्जाम नहीं है, वृधावास गृह की वो कड़वी सच्चाई है जो हमारे समाज के दोहरे माप दंड का प्रमाण देती है। सभी पाठको से मेरी यह विनती है की आप भले ही अपने माँ के साथ सेल्फी डाले या ना डाले पर अपनी माँ का ख्याल ज़रूर रखें। उनको दूर कहीं गाँव में अकेले छोड़ने से पहले विचार करें की वो वहां किस किस प्रकार की कठिनाईयों का सामना करेगी। शायद इतना ही काफी होगा आपके अपनी माँ के प्रति प्रेम का प्रमाण देने के लिए।
लेखक : रंजेश कुमार ( गुजरात मेट्रो रेल में कार्यरत)