मां दुर्गा के छठे रूप को कात्यायनी माता कहा जाता है। नवरात्रि के छठें दिन या षष्ठी के दिन मां कात्यायनी के पूजन का विधान है। इस साल षष्ठी की तिथि आज 11 अक्टूबर को पड़ रही है। कात्यायन ऋषि की पुत्री होने के कारण मां को कात्यायनी कहा गया है। पौराणिक कथा के अनुसार कात्यायनी माता ने ही महिषासुर और शुंभ-निशुंभ जैसे आतातायी राक्षसों का वध किया था। देवी कात्यायानी की पूजा शत्रु संहार की शक्ति प्राप्त होती है, साथ ही मां संतान प्राप्ति का भी वरदान प्रदान करती हैं। आइए जानते हैं मां कात्यायनी की पूजन विधि और मंत्र….
मां कात्यायनी की पूजा विधि
मां कात्यायनी की पूजा नवरात्रि की षष्ठी तिथि को होती है। इस दिन प्रातः काल में स्नान आदि से निवृत्त होकर मां की प्रतिमा की स्थापना करें। सबसे पहले मां का गंगा जल से आचमन करें। इसके बाद मां को रोली,अक्षत से अर्पित कर धूप, दीप से पूजन करें। मां कात्यायानी को गुड़हल या लाल रंग का फूल चढ़ाना चाहिए तथा मां को चुनरी और श्रृगांर का सामान अर्पित करें। इसके बाद दुर्गा सप्तशती, कवच और दुर्गा चलीसा का पाठ करना चाहिए। इसके साथ ही मां कात्यायनी के मंत्रों का जाप कर, पूजन के अंत में मां की आरती की जाती है। मां कात्यायनी को पूजन में शहद को भोग जरूर लगाएं। ऐसा करने से मां प्रसन्न होती हैं और आपकी सभी मनोकामनाओं की पूर्ति करती हैं।
शारदीय नवरात्रि के बारे में बात करते हुए, ये सबसे महत्वपूर्ण हिंदू त्योहार है, ये ग्रेगोरियन कैलेंडर के सितंबर/अक्टूबर के महीनों के दौरान आता है. हिन्दू चंद्र पंचांग के अनुसार, आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से इसकी शुरुआत होती है। ये नौ दिनों तक चलने वाला त्योहार है जिसे पूरे देश में बहुत ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। माता दुर्गा के नौ अवतारों में, नवरात्रि का प्रत्येक दिन एक रूप को समर्पित है।
मां कात्यायनी : तिथि और समय
षष्ठी तिथि 11 अक्टूबर 2021 को पड़ रही है।
षष्ठी तिथि 23:50 तक
सूर्योदय 06:19
सूर्यास्त 17:55
मां कात्यायनी: महत्व
वामन पुराण में दर्शाया गया है कि राक्षस महिषासुर को मारने के लिए, सहज क्रोध से, देवताओं की ऊर्जा किरणें ऋषि कात्यायन के आश्रम में संयुक्त और क्रिस्टलीकृत हुईं, जहां उन्होंने इसे देवी का उचित रूप दिया। कात्यायन की पुत्री के रूप में कात्यायनी नाम दिया गया है।
माता का वर्णन मार्कंडेय पुराण के देवी महात्म्य भाग में मिलता है जिसका श्रेय ऋषि मार्कंडेय को जाता है. उन्हें मां दुर्गा के आदि शक्ति स्वरूप के रूप में पूजा जाता है. अविवाहित लड़कियां व्रत रखती हैं और मनचाहा पति पाने के लिए इस रूप की पूजा करती हैं।
मां कात्यायनी चार हाथों वाली हैं जो कि सिंह पर सवार होती हैं। दो हाथों में वो खड्ग (लंबी तलवार) और फूल कमल धारण करती है. दूसरे हाथ अभयमुद्रा और वरदमुद्रा में हैं. लाल ड्रेस में लिपटी हैं मां कात्यायनी. वो लाल रंग और बृहस्पति ग्रह से जुड़ी हुई हैं।
मां कात्यायनी: मंत्र:
ऊं देवी कात्यायनयै नम:
ध्यान मंत्र
स्वर्णग्य चक्र स्थिति:
षष्टम दुर्गा त्रिनेत्रम।
वरभीत करम षडगपदमधरम कात्यायनसुतम भजमी
मां कात्यायनी: पूजा विधि
– भक्तों को जल्दी स्नान करने के बाद साफ कपड़े पहनने चाहिए।
– पूजा स्थल की सफाई की जाती है और ताजे फूल बदले जाते हैं।
– कलश और देवी की मूर्ति के सामने घी का दीपक जलाया जाता है।
– दुर्गा सप्तशती का पाठ किया जाता है, देवी मंत्र का जाप किया जाता है।
– माता की आरती की जाती है।
– प्रसाद चढ़ाकर सबके बीच बांटा जाता है।