लोकसभा चुनाव 2019: लालू प्रसाद के पुराने साथी रघुवंश प्रसाद सिंह क्या वैशाली सीट पर अपनी दाबेदारी बरकरार रख पाएंगे ।

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भारतीय इतिहास के सबसे पुराने गणतंत्र की पहचान वाले इस इलाक़े में इस बार सबसे बड़ा सवाल यही है कि दो राजपूतों की टक्कर में बाज़ी किसके नाम होगी । एक ओर हैं लालू प्रसाद यादव के सबसे पुराने साथी रघुवंश प्रसाद सिंह तो वहीं दूसरी ओर हैं राम विलास पासवान की पार्टी लोकतांत्रिक जनता पार्टी (लोजपा) की वीणा देवी ।बताते चले कि वीणा देवी जेडीयू के एमएलसी दिनेश चंद्र सिंह की पत्नी हैं ।

यह बिहार की उन चुनिंदा सीटों में है जहां दो सवर्ण उम्मीदवारों के बीच सीधी टक्कर है और दोनों की क़िस्मत की चाभी एक तीसरे सवर्ण समुदाय भूमिहार के हाथों में है ।

इस नजरिये से देखें तो वैशाली का चुनाव अपने आप में बेहद दिलचस्प होने वाला है । रघुवंश प्रसाद सिंह 1996 से इस इलाक़े का प्रतिनिधित्व करते रहे हैं, जबकि 2014 की मोदी लहर में लोजपा के राम किशोर सिंह के ख़िलाफ़ उन्हें हार का सामना करना पड़ा था ।

2008 के परिसीमन के बाद वैशाली लोकसभा की पांच विधानसभाएं, मुज़फ़्फ़रपुर ज़िले में शामिल हो गई ।

किसको जाएगा भूमिहार समुदाय का वोट

रास्ट्रीय जनता दल इस इलाक़े में भूमिहारों के वोट की अहमियत को ख़ूब समझती है, लिहाज़ा चुनाव से ठीक पहले उसने कांग्रेस के बाहुबली विधायक अनंत सिंह का रोड शो का आयोजन कराया ताकि भूमिहारों का वोट रघुवंश बाबू को मिल सके ।

पूरे बिहार में भूमिहार समुदाय, लालू यादव और आरजेडी की सबसे मुखर विरोधी रहा है लेकिन इस बार इस समुदाय के कई लोगों को यह मानना है कि उनकी वफ़ादारी का इनाम भारतीय जनता पार्टी ने नहीं दिया है ।

पिछले दिनों इस समुदाय के लोगों का एक वीडियो भी वायरल हुआ है जिसमें लोग नोटा दबाने की बात कह रहे हैं लेकिन अनंत सिंह दावा करते हैं कि भुमिहारों का वोट रघुवंश बाबू को ही मिलेगा क्योंकि उनके जैसा कोई नेता ही नहीं है ।

रघुवंश प्रसाद के चुनावी सभा मे उपस्थित लोगों का दृश्य ।

किस पर चलेगा राजपूतों का दांव

चुनावी सभा में शामिल राजपूत समुदाय से आने वाले एक शख्स ने बताया, रघुवंश बाबू की असली चुनौती वैशाली में भूमिहार नहीं हैं बल्कि राजपूत हैं । अगर उन्हें अपने समुदाय का समर्थन मिल गया तो उनकी जीत पक्की है ।

हम आपको बतादें कि 1952 में अस्तित्व में आए वैशाली संसदीय सीट पर 1977 तक दिग्विजय सिंह का इस सीट पर कब्जा रहा । लंगट सिंह के परिवार से संबंध रखने वाले दिग्विजय सिंह ने लगातार छह बार अपनी जीत दर्ज की । 1977 के बाद से अब तक हुए 12 चुनावों में दस बार राजपूत उम्मीदवारों ने जीत हासिल की है, जबकि दो बार भूमिहार समुदाय का उम्मीदवार जीत हासिल करने में कामयाब रहा है ।

लोजपा की वीणा देवी भी इस गणित को ख़ूब समझ रही हैं, लिहाज़ा आख़िरी दिनों में वे केंद्रीय गृह मंत्री और राजपूतों के बड़े नेता राजनाथ सिंह और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री और फायरब्रैंड नेता योगी आदित्यनाथ की सभा कराने की कोशिश कर रही हैं ।

वीणा देवी का दावा हैं कि वे स्थानीय उम्मीदवार हैं । उन्होंने बताया, मैं तो यहां की स्थानीय उम्मीदवार हूँ, बेटी भी हूं और बहू भी हूँ ,हर आदमी का साथ मुझे मिल रहा है ।

रघुवंश सिंह का दावादोतीन सीटों पर सिमट जाएगा एनडीए

2004 में केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री रहे रघुवंश प्रसाद सिंह का कांफिडेंस इस बार बढ़ा हुआ है, और वे ये भी दावा करते हैं एनडीए की बिहार में वर्तमान जो 32 सीट है, वो इस बार दो-तीन रह जाएगीं ।

लेकिन ऐसा तो तब होगा जब वो अपनी सीट पर जीत हासिल करें । पिछली बार लोजपा के राम किशोर सिंह को रघुवंश प्रसाद सिंह की तुलना में 10 फीसदी वोट ज्यादा मिले थे ।

इस बड़े अंतर को देखते हुए ही वीणा देवी का पलड़ा मज़बूत आंकने वाले लोगों की संख्या भी कम नहीं है । वैशाली में डोर टू डोर कैंपन चला रहीं वीणा देवी का मानना हैं कि मोदी जी के कामों के चलते जनता इस बार मुझे वोट देने को उत्सुक दिख रही हैं ।

 

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