पहले चरण में रिकार्ड तोड़ वोटिंग, किसको मिलेगा फायदा टीएमसी या बीजेपी?

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कोलकाता : पश्चिम बंगाल में पहले चरण के 30 विधान सभा क्षेत्रों में जबरदस्त वोटिंग हुई है। इसके बाद लाख टके का सवाल है कि रिकार्ड तोड़ वोटिंग का लाभ किसे मिलने जा रहा है टीएमसी या बीजेपी?  पहले चरण में 73 लाख से ज्यादा वोटर्स को 191 उम्मीदवारों के भाग्य का फैसला करना था। चुनाव आयोग के आंकड़ों के मुताबिक, पहले चरण में शाम 6 बजे तक 79.79 फीसदी वोटरों ने पोलिंग बूथ जाकर वोट डाले। ओपिनियन पोल्स में बीजेपी और टीएमसी में कांटे की टक्कर बताई गई है, ऐसे में सबकी उत्सुकता यह जानने में है कि इतनी भारी तादाद में वोटरों के पोलिंग बूथ पर जुटने के पीछे का संदेश क्या है? इतनी भारी तादाद में वोटिंग से फायदा किसका होने वाला है? क्या ममता वापसी करेंगी या बीजेपी राज्य में ऐतिहासिक उलटफेर करने में कामयाब रहेगी?

ज्यादा वोटिंग प्रतिशत का मतलब सत्तधारी दल के खिलाफ माहौल?

दरअसल आमतौर पर ज्यादा वोटिंग परसेंटेज को सीधे तौर पर सत्ताधारी पार्टी के खिलाफ जनमत के तौर पर देखा जाता है। कई बार यह गलत साबित हुई है। हालांकि बंगाल के मामले में यह फिट नहीं बैठती और कई बार गलत साबित हुई है। बंगाल का तो आमतौर पर भारी संख्या में वोटिंग करने का रेकॉर्ड रहा है, फिर चाहे वह लोकसभा चुनाव हों या विधानसभा चुनाव। बात विधानसभा चुनावों की करें तो साल 1996 में बंगाल में 82.91 फीसदी वोटिंग हुई थी, मगर नतीजा सत्ताधारी सीपीएम के पक्ष में ही रहा। 2006 के विधानसभा चुनावों से पहले ममता ने बंगाल में अपने पैर जमाने की काफी कोशिश की, मगर वह सीपीएम की जड़ें नहीं हिला सकीं। उस साल विधानसभा चुनावों में 81.92 फीसदी वोटिंग हुई और फायदा सीपीएम को ही हुआ।

ममता ने पहले भी गलत साबित किया, मगर इस बार चुनौती अलग
साल 2011 में ममता ने वाम मोर्चे की 34 साल पुरानी सत्ता को उखाड़ फेंका और पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री पद पर काबिज हुईं। 2016 में उनके खिलाफ काफी माहौल बनाया गया, राज्य में 83.07 फीसदी वोटिंग हुई मगर यह इस बार भी सत्ताधारी दल (इस बार टीएमसी) के पक्ष में रही। इस बार के चुनाव हर बार से थोड़े अलग हैं और वह इसलिए क्योंकि इस बार सत्ताधारी पार्टी के खिलाफ मुख्य मुकाबले में बीजेपी है जिसका 2016 के विधानसभा चुनावों तक राज्य में खुद के दम पर कोई खास जनाधार नहीं था। 2019 के लोकसभा चुनाव में 18 सीटें जीतकर बीजेपी का हौसला बुलंद है और वह इस बार ममता सरकार को सत्ता से बेदखल तक करने का दावा कर रही है।
महिलाओं की ‘चुप्पी’ में छिपा टीएमसी की जीत का रहस्य!
टीएमसी के हावी रहने की वजह यह भी है कि उसके पास महिलाओं का साथ अच्छी-खासी संख्या में है। मैंने कई ओपिनियन पोल्स देखे मगर उनमें टीएमसी की इस ताकत के बारे में कहीं बात नहीं हो रही है। ग्रामीण महिलाओं और ऐसे ही साइलेंट वोटर्स की राय को जाने बिना बंगाल चुनाव के नतीजों का अंदाजा तो नहीं लगाया जा सकता है। ऐसी महिलाओं का 60:40 के अनुपात में वोट ममता के पक्ष में जाता दिख रहा है, मगर इसकी चर्चा ओपिनियन पोल्स में नहीं है।’

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