सिमडेगा: आदिवासी बहुल सिमडेगा में दुर्गा पूजा का गौरवशाली इतिहास है। सिमडेगा के कोलेबिरा धर्मशाला में आजादी के पहले से ही दुर्गा पूजा हो रही है। पहली बार यहां सन 1941 में दुर्गा पूजा का आयोजन स्थानीय ग्रामीणों के द्वारा धूमधाम हर्षोल्लास के साथ किया गया था। धर्मशाला दुर्गा पूजा का प्रारंभ कोलेबिरा थाना में अंग्रेजो के शासनकाल में पदस्थापित जमादार स्वर्गीय सतीश चंद्र मुखर्जी, सहित स्वर्गीय ओहदार रणबहादुर सिंह, स्वर्गीय हरिशंकर साहू स्वर्गीय कालीचरण साहू स्वर्गीय शिव शंकर साहू आदि लोगों के द्वारा प्रारंभ किया गया था। उस वक्त लोग थाना परिसर में झोपड़ी बनाकर दुर्गा पूजा किया करते थे। इसके बाद अंग्रेजों के निर्देश पर सुरक्षा की दृष्टि को देखते हुए दुर्गा पूजा का आयोजन मौसी बारी परिसर में खपरैल घर में किया जाना प्रारंभ हुआ। कुछ वर्षों तक मौसी बारी परिसर में दुर्गा पूजा हुआ उसके बाद 33 मौजा के जमींदार ओहदार रण बहादुर सिंह के द्वारा कोलेबिरा थाना मोड़ के समीप दुर्गा पूजा करने के लिए 6 डिसमिल जमीन दी गई। तब से आज तक उसी स्थान में लोग प्रतिवर्ष हर्षोल्लास व धूमधाम के साथ दुर्गा पूजा मनाते आ रहे हैं। पहले इस जगह लोग खपरैल झोपड़ी बनाकर दुर्गा पूजा किया करते थे। सन 1998 में स्थानीय सांसद कड़िया मुंडा के द्वारा सामुदायिक भवन का निर्माण कराया गया। तबसे उसी भवन में प्रतिवर्ष दुर्गा पूजा हो रही है। दुर्गा पूजा में मां दुर्गा की मूर्ति बंगाल राज्य के पुरूलिया जिला के डिमडिया निवासी स्वर्गीय वृंदावन सूत्रधार ने यहां आकर मूर्ति बनाना प्रारंभ किया। उनकी मृत्यु के बाद उनके पुत्र स्वर्गीय अनिल सूत्रधार एवं स्वर्गीय शिबू सूत्रधार मूर्ति बनाए। इन दोनों के मृत्यु के बाद वृंदावन सूत्रधार की तीसरी पीढ़ी स्वर्गीय अनिल सूत्रधार का पुत्र अश्विनी सूत्रधार, तुलसी सूत्रधार एवं ध्रुवा सूत्रधार के द्वारा आजकल मूर्ति बनाई जाती है। वही पुरोहित की भूमिका में 1941 में सर्वप्रथम लंबोदर पति रहे। उसके बाद 1944 से सिमडेगा के आचार्य स्वर्गीय रमापति शास्त्री यहां पूजा करना शुरू किया।. इनके बाद 1968 से उनके पुत्र स्वर्गीय योगेश शास्त्री ने पुरोहित की भूमिका निभाई। इनके निधन के बाद 1992 से इनके पुत्र स्व आनंद शास्त्री ने यहां पुरोहित की भूमिका निभाई। वर्तमान समय में पलामू लेस्लीगंज के पुरोहित शंकर दयाल गिरी पुरोहित की भूमिका निभा रहे हैं।