सदैव अटल : मुकाबला करना तो दूर अच्छे राजनेता उनके व्यक्तित्व और काम के आस-पास भी नहीं

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लखनऊ :- देश के सबसे लोकप्रिय सांसद तथा तीन बार देश के प्रधानमंत्री रहे अटल बिहारी वाजपेयी की आज पहली पुण्यतिथि है। भारत ही नहीं विश्व भर के नेता तथा उनको चाहने वाले आज उनको याद कर रहे हैं। देश हित में पार्टी की वरीयता को भी पीछे करने वाले भारत रत्न स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी का कद इतना ऊंचा था कि उनसे मुकाबला करना तो दूर अच्छे से अच्छे राजनेता तो उनके व्यक्तित्व और काम के आस-पास भी नहीं हैं। आज देश उनको नम आंखों याद कर रहा है।

पांच दशक तक भारत की राजनीति में चमकने वाले इस सितारे को दस बार लोकसभा तथा दो बार राज्यसभा में जाने का मौका मिला। मध्य प्रदेश के ग्वालियर में जन्मे अटल बिहारी वाजपेयी ने उच्च शिक्षा कानपुर में ग्रहण की। कवि हृदय भारतीय जनसंघ के संस्थापक अटल बिहारी वाजपेयी अपनी प्रतिभा, नेतृत्व क्षमता के कारण हमेशा से ही लोकप्रिय रहे हैं। अटल बिहारी वाजपेयी ने शिक्षा, भाषा और साहित्य पर हमेशा जोर दिया। उनके अनुसार शिक्षा और भाषा के माध्यम से न केवल प्रति व्यक्ति का, समाज का बल्कि उसकी स्थिति में भी सुधार किया जा सकता है।

सामाजिक व्यवस्था पर भी उनकी सदैव पैनी नजर रही। उनका मानना था कि पारस्परिक सहकारिता और त्याग की प्रवृत्ति को बल देकर ही मानव-समाज प्रगति और समृद्धि का पूरा-पूरा लाभ उठा सकता है। शिक्षा से व्यक्ति के व्यक्तित्व का विकास होता है। व्यक्तित्व के उत्तम विकास के लिए शिक्षा का स्वरूप आदर्शों से युक्त होना चाहिए। उनका मानना था कि हमारी माटी में आदर्शों की कमी नहीं है। शिक्षा से ही हम नवयुवकों में राष्ट्रप्रेम की भावना जाग्रत कर सकते हैं। शिक्षा का माध्यम मातृभाषा होनी चाहिए। ऊंची-से-ऊंची शिक्षा मातृभाषा के माध्यम से दी जानी चाहिए। राष्ट्र की सच्ची एकता तब पैदा होगी, जब भारतीय भाषाएं अपना स्थान ग्रहण करेंगी। उनका मानना था कि भुखमरी ईश्वर का विधान नहीं, मानवीय व्यवस्था की विफलता का परिणाम है। इसके साथ ही वह मानते थे कि निरक्षरता का और निर्धनता का बड़ा गहरा संबंध है।

पार्टियां बनें या बिगड़ें लेकिन देश नहीं बिगडऩा चाहिए

वाजपेयी जी का मानना था कि पार्टियां बनें या बिगड़ें लेकिन देश नहीं बिगडऩा चाहिए। देश में स्वस्थ्य लोकतंत्र की व्यवस्था रहनी चाहिए। जब जब कभी आवश्यकता पड़ी, संकटों के निराकण में हमने उस समय की सरकार की मदद की है, उस समय के प्रधानमंत्री नरसिंह राव जी ने मुझे विरोधी दल के रूप में जिनेवा भेजा था। पाकिस्तानी मुझे देखकर चकित रह गए थे। वो सोच रहे थे ये कहां से आ गया। उनके यहां विरोधी दल का नेता राष्ट्रीय कार्य में सहयोग देने के लिए तैयार नहीं होता। वह हर जगह अपनी सरकार को गिराने के काम में लगा रहता है, यह हमारी प्रकृति नहीं है, यह हमारी परंपरा नहीं है। मैं चाहता हूं यह परंपरा बनी रहे, यह प्रकृति बनी रहे, सरकारें आएंगी-जाएंगी, पार्टियां बनेंगा-बिगड़ेंगी पर यह देश रहना चाहिए। इस देश का लोकतंत्र अमर रहना चाहिए।

बेजोड़ अटल जी

अटल जी सबके बीच खासे लोकप्रिय रहे हैं और उनकी बेजोड़ शख्सियत के चाहने वाले तमाम लोग हैं। ‘अटल जी’ या अटल बिहारी वाजपेयी एक ऐसा नाम जिसका जिक्र आते ही एक ऐसे सौम्य राजनेता की तस्वीर सामने सामने आती है जिसका मुकाबला करना तो दूर बड़े बड़े अच्छे राजनेता उनके व्यक्तित्व और काम के आस-पास भी नहीं फटक सकते। उनकी बेजोड़ शख्सियत के चाहने वाले तमाम लोग रहे हैं मगर उनके प्रधानमंत्री बनने के बाद उन्होंने जो कदम आम लोगों के लिए उठाए वो उन्हें बेहद लोकप्रिय बनाते हैं। ‘अटल जीÓ जब प्रधानमंत्री रहे थे तो उन्होंने अपने इस कार्यकाल में तमाम ऐसे काम किए जो आज भी उनकी याद दिलाते हैं। अटल बिहारी वाजपेयी की दूरदृष्टि वाला राजनेता कहा जाता था उन्होंने देश के विकास के लिए कई योजनायें बनाई ना सिर्फ बनाईं बल्कि उन्हें जमीनी धरातल पर भी उतारा।

अटल जी के यादगार काम

1- पोखरण में परमाणु परीक्षण

मई 1998 में भारत ने पोखरण में परमाणु परीक्षण किया था। यह अटल जी के कार्यकाल की बहुत बड़ी उपलब्धि मानी जाती है, भारत परमाणु संपन्न देश है दुनिया को ये दिखाने के लिए अटल बिहारी वाजपेयी ने इतना बड़ा कदम उठाया था।अमेरिका सहित पश्चिम देशों के दबावों के बावजूद वाजपेयी ने साहसिक फैसला किया। परमाणु परीक्षणों के बाद देश को प्रतिबंधों के दौर से गुजरना पड़ सकता है यह जानते हुए भी उन्होंने इसकी परवाह नहीं की और देशहित में साहसिक फैसला लिया। उनके निर्देश पर भारत ने पोखरण में पांच परमाणु परीक्षण किए। इन परीक्षणों के बाद भारत पूर्ण रूप से परमाणु हथियार संपन्न देश बन गया।

2- स्वर्ण चतुर्भुज योजना

अटल जी के जिस काम को खासा अहम माना जा सकता है वो सड़कों के माध्यम से भारत को जोडऩे की योजना है। अटल बिहारी वाजपेयी देश के चार बड़े महानगरों चेन्नई, कोलकाता, दिल्ली और मुंबई को जोडऩे के लिए स्वर्ण चतुर्भुज योजना शुरू की। औद्योगिक विकास को गति देने और परिवहन की सुगमता के लिए यह परियोजना क्रांतिकारी साबित हुई। वाजपेयी जी का ध्यान केवल शहरों तक ही सीमित नहीं था। गावों में सड़कों का जाल बिछाने और उन्हें शहरों से जोडऩे के लिए उन्होंने महात्वाकांक्षी प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना की शुरुआत की। ऐसा माना जाता है कि अटल जी के शासनकाल में भारत में जितनी सड़कों का निर्माण हुआ इतना केवल शेरशाह सूरी के समय में ही हुआ था।

3- निजीकरण की पहल

अटल विहारी वाजपेयी ने देश के साथ विदेश में व्यापार को को बढ़ावा देते हुए सरकार की भागीदारी को कम किया और इसके लिए उन्होंने अलग से विनिमेश मंत्रालय बनाया था। वाजपेयी जी देश को तेजी से तरक्की के रास्ते पर ले जाना चाहते थे। वाजपेयी जी को यह अहसास था कि केवल सरकार की भागीदारी से देश तेजी से विकास नहीं कर सकता। उन्होंने भारत के आर्थिक विकास की गति बढ़ाने के लिए देशी उपक्रमों में विनिवेश का फैसला किया। इसके लिए उन्होंने एक अलग विनिवेश मंत्रालय की स्थापना की। उन्होंने भारतीय पेट्रोकेमिकल कॉरपोरेशन लिमिटेड एवं वीएसएनल में विनिवेश का फैसला किया। इसे वाजपेयी का दूरदर्शी फैसला माना जाता है।

4- संचार क्रांति को दिया बढ़ावा

भारत में संचार क्रांति को आम लोगों तक पहुंचाने का काम अटल सरकार ने ही किया था। उन्होंने नई दूरसंचार नीति के तहत रेवेन्यू शेयरिंग मॉडल पेश किया जिसने दूरसंचार कंपनियों को खासी मदद दी। 1999 में अटल जी ने बीएसएनएल के एकाधिकार को खत्म करते हुए देश में नई टेलिकॉम नीति लागू की थी।

5- पाकिस्तान से संबंधों में सुधार की पहल

उनके कार्यकाल में 19 फरवरी 1999 को सदा-ए-सरहद नाम से दिल्ली से लाहौर तक बस सेवा शुरू की गई। इस सेवा का उद्घाटन करते हुए प्रथम यात्री के रूप में वाजपेयी जी ने पाकिस्तान की यात्रा करके नवाज शरीफ से मुलाकात की और आपसी संबंधों में एक नयी शुरुआत की थी। वाजपेयी जी कहा करते थे कि आप दोस्त बदल सकते हैं लेकिन पड़ोसी नहीं। पाकिस्तान के लिए उनकी यह सोच हमेशा काम करती रही। उनका मानना था कि युद्ध और हिंसा से दोनों तरफ नुकसान होगा। पाकिस्तान के साथ शांति-सौहार्द और विश्वास बहाली के लिए उन्होंने राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ के साथ दिल्ली और आगरा में वार्ता की। साल 1999 में वाजपेयी बस लेकर लाहौर गए और नवाज शरीफ के साथ वार्ता की। उनके इन प्रयासों की सराहाना पाकिस्तान भी कर रहा है।

6- सर्व शिक्षा अभियान

6 से 14 साल के बच्चों को मुफ्त प्राथमिक शिक्षा देने के लिए एक सामाजिक योजना की शुरूआत की गई थी, 2001 में वाजपेयी सरकार ने सर्व शिक्षा अभियान को लॉन्च किया था।

7- कावेरी जल विवाद का निपटारा सहित अन्य यादगार काम

वाजपेयी जी के कार्यकाल में एक सौ साल से भी च्यादा पुराने कावेरी जल विवाद को सुलझाया गया। इसके साथ संरचनात्मक ढाँचे के लिये कार्यदल, सॉफ्टवेयर विकास के लिये सूचना एवं प्रौद्योगिकी कार्यदल, विद्युतीकरण में गति लाने के लिये केन्द्रीय विद्युत नियामक आयोग आदि का गठन किया। राष्ट्रीय राजमार्गों एवं हवाई अड्डों का विकास। नई टेलीकॉम नीति तथा कोकण रेलवे की शुरुआत करके बुनियादी संरचनात्मक ढाँचे को मजबूत करने वाले कदम उठाये। उड़ीसा के सर्वाधिक गरीब क्षेत्र के लिये सात सूत्रीय गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम शुरू किया। ग्रामीण रोजगार सृजन एवं विदेशों में बसे भारतीय मूल के लोगों के लिये बीमा योजना शुरू की।

अटल बिहारी वाजपेयी ऐसे राजनेता रहे हैं जो अपनी पार्टी के साथ ही सभी दलों के प्रिय नेता रहे हैं। भारत के राजनीतिक इतिहास में अटल बिहारी वाजपेयी का संपूर्ण व्यक्तित्व शिखर पुरुष के रूप में दर्ज है। उनके भाषण के सभी कायल रहे हैं। जब वो सदन में बोलते थे तो हर कोई उन्हें सुनना चाहता था।

अमर हो गया भाषण

ऐसा ही सदन में दिया उनका भाषण अमर हो गया। वो भाषण था 31 मई 1996 का। जब अटल जी प्रधानमंत्री थे और उनकी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया गया था तो उन्होंने खुद सदन में पार्टी के संख्या बल कम होने की बात कही थी और राष्ट्रपति को इस्तीफा सौंपा था। इस दौरान उन्होंने जो भाषण दिया वह आज भी राजनीति के सर्वश्रेष्ठ भाषणों में से एक गिना जाता है। इसके साथ ही अटल जी ने जो बातें विपक्षी दलों, पत्रकारों आदि के बारे में कही हैं उनसे सभी को प्रेरणा लेनी चाहिए। पढ़ें उनकी वो सभी बातें। लोग उनके बारे में क्या विचार रखते हैं उस बारे में उन्होंने संसद के पटल से कहा था, ‘कई बार यह सुनने में आता है कि वाजपेयी तो अच्छा लेकिन पार्टी खराब….अच्छा तो इस अच्छे बाजपेयी का आप क्या करने का इरादा रखते हैं?Ó

अपने इस्तीफे पर उन्होंने कहा था

आज प्रधानमंत्री हूं, थोड़ी देर बाद नहीं रहूंगा, प्रधानमंत्री बनते समय कोई मेरा हृदय आनंद से उछलने लगा ऐसा नहीं हुआ, और ऐसा नहीं है कि सब कुछ छोड़छाड़ के जब चला जाऊंगा तो मुझे कोई दुख होगा। अपने राजनीतिक सिद्धांतों पर कहा कि मैं 40 साल से इस सदन का सदस्य हूं, सदस्यों ने मेरा व्यवहार देखा, मेरा आचरण देखा। पार्टी तोड़कर सत्ता के लिए नया गठबंधन करके अगर सत्ता हाथ में आती है तो मैं ऐसी सत्ता को चिमटे से भी छूना पसंद नहीं करूंगा।।

पार्टी के संघर्ष के बारे में उन्होंने कहा था कि हमारे प्रयासों के पीछे 40 सालों की साधना है, यह कोई आकस्मिक जनादेश नहीं है, कोई चमत्कार नहीं हुआ है, हमने मेहनत की है, हम लोगों के बीच गए हैं, हमने संघर्ष किया है, यह पार्टी 365 दिन चलने वाली पार्टी है। यह कोई चुनाव में कुकरमुत्ते की तरह खड़ी होने वाली पार्टी नहीं है।

अपने करियर की शुरुआत पत्रकारिता से करने वाले वाजपेयी का पत्रकारों को लेकर बहुत सरल व्यवहार रहा। उन्होंने एक बार पत्रकारों से कहा था कि मैं पत्रकार होना चाहता था, बन गया प्रधानमंत्री, आजकल पत्रकार मेरी हालत खराब कर रहे हैं,। मैं बुरा नहीं मानता हूं, क्योंकि मैं पहले यह कर चुका हूं।

भारत रत्न से सम्मानित और देश के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का 16 अगस्त 2018 को 93 वर्ष की आयु में निधन हो गया था। जिसके बाद भाजपा ने उनकी अस्थियों को देश की 100 नदियों में प्रवाहित किया था और इसकी शुरुआत हरिद्वार में गंगा में विसर्जन के साथ हुई थी। दिल्ली में पूर्व प्रधानमंत्री के स्मृति स्थल को सदैव अटल नाम दिया गया है।

वाजपेयी पहली बार 1996 में प्रधानमंत्री बने थे, लेकिन इस दौरान सिर्फ 13 दिनों तक ही उनकी सरकार चल सकी थी। इसके बाद वह दोबारा 1998 में प्रधानमंत्री बने, लेकिन इस बार सिर्फ 13 महीनों तक उनकी सरकार चली। इसके बाद एक बार फिर 1999 में वाजपेयी तीसरी बार प्रधानमंत्री बने और अपना पांच वर्ष का कार्यकाल पूरा किया। 

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