जमशेदपुर : हुल दिवस के मौके पर अग्रेंजो के खिलाफ लड़ाई का सूत्रपात करने वाले वीर सेनानी सिदो-कान्हू के आज विभिन्न राजनीतिक दलों ने स्मरण किया। इस मौके पर वीर सेनानी सिदो-कान्हू की तस्वीर पर पुष्पमाला अर्पित किया गया।
हूल दिवस पर भी वंशजों ने अपने घर पर धरना दिया। गौरतलब है कि 30 जून 1855 को अंग्रेजो के खिलाफ आदिवासियों ने आंदोलन का बिगुल फूंका था, सिदो कान्हू ने इसकी अगुवाई की थी। इसे हूल क्रांति कहते हैं।
आज ही के दिन संथाल परगना के आदिवासियों ने अंग्रेजों के खिलाफ पहली जन क्रांति की थी जिसके जननायक वीर योद्धा भाई सिद्धू-कान्हू थे । इसी संथाल विद्रोह ने दो वर्ष बाद 1857 में हुए स्वतंत्रता संग्राम की नीव रखी थी
संथाल परगना को पहले जंगल तराई के नाम से जाना जाता था। संथाल आदिवासी लोग संथाल परगना क्षेत्र में 1790 ई0 से 1810 ई0 के बीच बसे। संथाल परगना को अंग्रेजो द्वारा दामिन ए कोह कहा जाता था और इसकी घोषणा 1824 को हुई। और इसी संथाल परगाना में संथाल आदिवासी परिवार में दो वीर भईयों का जन्म हुआ । जिसे हम सिदो-कान्हू मुर्मू के नाम से जानते हैं जिसने अंग्रेजो के आधुनिक हथियारों को अपने तीर धनुष के आगे झुकने पर मजबूर कर दिया था।
सिदो-कान्हू मुर्मू का जन्म भोगनाडीह नामक गाँव में एक संथाल आदिवासी परवार में हुआ था जो कि वर्तमान में झारखण्ड के साहेबगंज जिला के बरहेट प्रखंड में है। सिदो मुर्मू का जन्म 1815 ई0 में हुआ था एवं कान्हू मुर्मू का जन्म 1820 ई0 में हुआ था।
संथाल विद्रोह में सक्रिय भूमिका निभाने वाले इनके और दो भाई भी थे जिनका नाम चाँद मुर्मू और भैरव मुर्मू था। चाँद का जन्म 1825 ई0 में एवं भैरव का जन्म 1835 ई0 में हुआ था। इनके अलावा इनकि दो बहने भी थी जिनका नाम फुलो मुर्मू एवं झानो मुर्मू था। इन 6 भाई-बहनो का पिता का नाम चुन्नी माँझी था।
इन छः भाई बहनो का जन्म भोगनाडी गाँव मे हुआ था जो कि वर्तमान में झारखण्ड राज्य के संथाल परगाना परमण्ल के साहेबगंज जिला के बरहेट प्रखण्ड के भोगनाडीह में है।