जमशेदपुर सिंदूर खेला के साथ होगी मां दुर्गा की विदाई। शारदीय दुर्गा पूजा उत्सव के अंतिम दिन मां दुर्गा की विधिवत पूजा अर्चना की जाएगी। इस अवसर पर महिलाएं एक-दूसरे को सिंदूर लगाकर मां दुर्गा का आशीर्वाद लूंगी। मां दुर्गा को सिंदूर खेला के साथ अगले वर्ष फिर से आने का न्योता भी दिया जाएगा। इस दौरान सुबह से ही लोग पंडालों में जुड़ जाते हैं क्योंकि हर एक लोग मां दुर्गा के विसर्जन समारोह का गवाह बनने के लिए उत्साहित रहते हैं। महिलाएं सिंदूर खेला के साथ की सदा सुहागन रहने का आशीर्वाद ही मांगती हैं।
जाने सिंदूर खेला के महत्व के बारे में
वरात्रि में मां दुर्गा के आखिरी दिन यानी विजयदशमी के दिन पंडालों में महिलाएं मां दुर्गा को सिंदूर अर्पित करती हैं। इसके बाद सभी महिलाएं पान और मिठाई का भोग लगा कर एक दूसरे को सिंदूर लगाती हैं। यह करीब चार सौ साल पुरानी परंपरा है। इस शुभ दिन और परंपरा को सिंदूर खेला कहा जाता है।
सिंदूर खेला को सुहागिन महिलाओं का त्योहार माना जाता है। इस दिन शादीशुदा महिलाएं लाल रंग की साड़ी पहन कर माथे में सिंदूर भर कर पंडाल पहुंच कर दुर्गा मां को उलू ध्वनी के साथ विदा करती हैं। इसमें विधवा, तलाकशुदा, किन्नर और नगरवधुओं को शामिल नहीं किया जाता था। हालांकि पिछले कुछ सालों में समाजिक बदलाव की ओर कदम उठाते हुए अब सिंदूर खेला में सभी महिलाओं की भागीदारी देखी जाती है।
क्या है मान्यता
मान्यता है कि मां दुर्गा की मांग भर कर उन्हें मायके से ससुराल विदा किया जाता है। कहते हैं कि मां दुर्गा पूरे साल में एक बार अपने मायके आती हैं और पांच दिन मायके में रुकने के बाद दुर्गा पूजा होती है।
सिंदूर को सदियों से महिलाओं के सुहाग की निशानी माना गया है। मां दुर्गा को सिंदूर लगाने का बड़ा महत्व है। सिंदूर को मां दुर्गा के शादी शुदा होने का प्रतीक माना जाता है ।
क्या होता है इस दिन
सिंदूर खेला में पान के पत्ते से मां दुर्गा के गालों को स्पर्श किया जाता है। फिर उनकी मांग और माथे पर सिंदूर लगाया जाता है। इसके बाद मां को मिठाई खिलाकर भोग लगाया जाता है। फिर सभी महिलाएं एक-दूसरे को सिंदूर लगाकर लंबे सुहाग की कामना करती हैं।
सुहाग की सलामती
शादीशुदा औरतें लाल साड़ी पहनकर माथे में सिंदूर लगाकर पंडालों में पहुंचती हैं। मान्यता है कि जो महिलाएं सिंदूर खेला की प्रथा निभाती हैं उनका सुहाग और बच्चे सदा सलामत रहते हैं।