जमशेदपुर । बुधवार 11 अगस्त को आदिवासी अफेयर्स एसोसिएशन की बैठक अमृत तिरू की अध्यक्षता में टेल्को राम मंदिर के समीप रखी गयी। बैठक का मुख्य मुद्दा इस प्रकार थे :- 1) झारखण्ड मुक्ति मोर्चा द्वारा लिया गए निर्णय का समर्थन करना। जिसमें कहा गया है कि पांचवीं अनुसूची क्षेत्र में शत प्रतिशत बहाली हो । 2) झारखण्ड मुक्ति मोर्चा जितने भी बिन्दुओं पर अपनी मांग रख रही है वो पूर्ण रूप से भारत के संविधान के निहित अनुच्छेद 244(1), अनुच्छेद 19(5,6) के अन्तर्गत हैं | 3) सरकार के द्वारा डोमिसाइल के प्रावधान किये गए है वो आदिवासियों के विरूद्ध है, डोमिसाइल खतियान आधारित होनी चाहिए । बैठक के संचालनकर्ता मोला बोदरा ने लोगों को जानकारी दी कि आदिवासी समाज वर्षों से ठगा हुआ महसूस करता था, पर आज झारखण्ड मुक्ति मोर्चा के स्टैंड से आदिवासियों को मानसिक रूप से बल प्राप्त हुआ है। जिसका हमें आभार व्यक्त करना चाहिए। उन्होंने कहा कि आदिवासियों की वर्षों पुरानी माँग को फिर से उठाने के लिए जमशेदपुर के चारों झारखंडी विधायकों रामदास सोरेन (विधायक घाटशिला), संजीव सरदार (विधायक पोटका), मंगल कालिन्दी (विधायक जुगसलाई) और समीर महन्ती (विधायक बहरागोड़ा) का हृदय से आभार व्यक्त करता है । जमशेदपुर में टाटा स्टील और टाटा ग्रुप की दूसरी कंपनियों के लिए हजारों आदिवासियों ने लाखों एकड़ जमीन दी थी । लेकिन बिहार सरकार ने ना ही आदिवासियों को नौकरियां दी और ना ही कोई मुआवजा । उल्टे लाठी, बंदूक और गोली के दम पर 50 सालों तक बिहार के लोगों ने जमशेदपुर के आदिवासियों की आवाज को कुचलने के काम किया । जमशेदपुर के इतिहास को देखा जाए तो यह शहर हजारों आदिवासियों की लाश पर खड़ा है । अब तो टाटा स्टील की 99 साल की लीज की अवधि भी पूरी हो गयी । देखा जाए तो अब टाटा स्टील की जमीन वास्तविक रैयतों को वापस मिलनी चाहिए, लेकिन अब तो शहर में ना ही आदिवासी दिखते हैं और ना ही आदिवासी बस्तियां । सुनियोजित तरीके से बाहरी को 86 बस्तियों में बसाकर एक उपनिवेश बना दिया गया है जहां व्यापार, राजनीति और नौकरियों में बाहरी लोगों का ही कब्जा है । वर्षों से ट्रेड अप्रैटिस में यूपी और बिहार के लोगों की भर्ती की जा रही थी, जिससे जमशेदपुर शहरी क्षेत्र की डोमोग्राफी में काफी परिवर्तन आ गया है और आदिवासियों की आबादी 60% से घटकर 30% पर आ गयी है अंततः अब जाकर आदिवासी नेतृत्व ने अनुसूचित क्षेत्र में बाहरी आबादी के बसने के दूरगामी प्रभावों को समझा और ट्रेड अप्रैटिस में बाहरी की बहाली का डटकर विरोध शुरू कर दिया है । किसी भी इलाके की सरकारी और प्राइवेट नौकरियों में पहला हक उसी इलाके के नौजवानों का बनता है, लेकिन टाटा स्टील प्रबंधन और टाटा स्टील ट्रेड यूनियन में कार्यरत बाहरी लोग पिछले 70 सालों से यूपी, बिहार के लोगों को ही नौकरियां दे रहे हैं । पॉलिसी ऐसी बनाकर रखी गयी है कि पीढ़ी दर पीढ़ी बाहरी लोगों के बेटे-बेटियों और दामादों को ही नौकरी मिलेगी।
अब समय आ गया है कि झारखंड की राज्य सरकार हस्तक्षेप करे और कानून बनाकर झारखण्ड की निजी क्षेत्र की नौकरियों में आदिवासी मूलवासी समुदाय की हिस्सेदारी सुनिश्चित करे । इस बैठक में मुख्य रूप से ईमानुएल तिग्गा, जी0एस0 बांदिया, दनियल आईन्द, सुरज भुमिज, रमन सिंह मुण्डा, सलमन कांडियन, छोटो बोदरा, परवल किन्डो, भीम चरण मार्डी, गंगाराम बिरूली, नामजन कुनगाड़ी, सतीश पूर्ति, मुकूल तिर्की आदि आदिवासी सामाजिक संगठनों के लोगों ने भाग लिया ।