जमशेदपुर :भारत द्वारा अधिकृत विवादित क्षेत्र में बढ़ते चीनी घुसपैठ के जवाब में भारत सरकार ने “फॉरवर्ड पॉलिसी” को लागू किया। योजना यह थी कि चीन के सामने कई छोटी-छोटी पोस्टों की स्थापना की जाए। चीन-भारतीय युद्ध अक्टूबर 1962 में शुरू हुआ। 21 अक्तूबर को, चीनी ने पैनगॉन्ग झील के उत्तर में सिरिजैप और यूल पर कब्ज़ा करने के उद्देश्य से घुसपैठ शुरू की थी।
सिरिजैप 1, पांगॉन्ग झील के उत्तरी किनारे पर 8 गोरखा राइफल्स की प्रथम बटालियन द्वारा स्थापित एक पोस्ट थी जो मेजर धन सिंह थापा जी की कमान में थी। जल्द ही यह पोस्ट चीनी सेनाओं द्वारा घेर लिया गया था। मेजर थापा जी और उनके सैनिकों ने इस पोस्ट पर होने वाले तीन आक्रमणों को असफल कर दिया। श्री थापा सहित बचे लोगों को युद्ध के कैदियों के रूप में कैद कर लिया गया था।
मेजर धनसिंह थापा जी परमवीर चक्र से सम्मानित नेपाली मूल के भारतीय सैनिक हैं। इन्हे यह सम्मान सन 1962 मे मिला।वे अगस्त १९४९ में भारतीय सेना की आठवीं गोरखा राइफल्स में अधिकारी के रूप में शामिल हुए थे।
चुशूल चैकी पर कब्जे का समाचार जब सेना मुख्यालय में पहुँचा, तो सबने मान लिया कि वहाँ तैनात मेजर थापा जी और शेष सब सैनिक वीरगति को प्राप्त हो गये होंगे। देश भर में मेजर थापा जी और उनके सैनिकों की वीरता के किस्से सुनाये जाने लगे। 28 अक्तूबर को जनरल पी.एन. थापर ने मेजर थापा जी की पत्नी को पत्र लिखकर उनके पति के दिवंगत होने की सूचना दी। परिवार में दुःख और शोक की लहर दौड़ गयी; पर उनके परिवार में परम्परागत रूप से सैन्यकर्म होता था, अतः सीने पर पत्थर रखकर परिवारजनों ने उनके अन्तिम संस्कार की औपचारिकताएँ पूरी कर दीं।सेना के अनुरोध पर भारत सरकार ने मेजर धनसिंह थापा को मरणोपरान्त ‘परमवीर चक्र’ देने की घोषणा कर दी; लेकिन युद्ध समाप्त होने के बाद जब चीन ने भारत को उसके युद्धबन्दियों की सूची दी, तो उसमें मेजर थापा जी का भी नाम था। इस समाचार से पूरे देश में प्रसन्नता फैल गयी।अपने महान कृत्यों और अपने सैनिकों को युद्ध के दौरान प्रेरित करने के उनके प्रयासों के कारण उन्हें परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया।।