वर्तमान सरकार नहीं चाहती कि स्थानीय युवा नौकरी करें – रघुवर दास

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जमशेदपुर / रांची : हमारी सरकार ने हमारे आदिवासी-मूलवासियों के हित में नियोजन नीति बनाकर स्थानीय युवाओं को नौकरी में प्राथमिकता देने का काम किया था। संविधान की पांचवीं अनुसूची में माननीय राज्यपाल को शिड्यूल एरिया (अधिसूचित क्षेत्र) के मामले में नियम बनाने के अधिकार दिये गये हैं। झारखंड में शिक्षकों की व्यापक कमी थी। बच्चों की पढ़ाई बाधित हो रही थी। इसी के आधार पर हमारी सरकार ने स्थानीय स्तर पर युवाओं को नौकरी देने के लिए नियोजन नीति बनायी। लेकिन वर्तमान सरकार ने राजनीतिक दुर्भावना से ग्रसित होकर हमारी सरकार को बदनाम करने के लिए सही तरीके से उच्च न्यायालय में अपना पक्ष नहीं रखा। इस कारण हमारे आदिवासी मूलवासी युवाओं का भविष्य अंधकार में होने के कगार पर पहुंच गया है। उक्त बातें पूर्व मुख्यमंत्री श्री रघुवर दास ने कहीं। उन्होंने कहा कि राजनीतिक प्रतिद्वंदिता के कारण हमारे आदिवासी-मूलवासी युवाओं के भविष्य के साथ खिलवाड़ नहीं किया जाना चाहिए। इन दलों ने राजनीति फायदे के लिए 14 सालों तक स्थानीय नीति नहीं बनने दी। उन्हें राज्य के युवाओं के भविष्य की चिंता न पहले थी और न अब है।
उन्होंने कहा कि हमारे यहां शिक्षा की समूचित व्यवस्था नहीं होने के कारण राज्य के ज्यादातर पिछड़े जिलों में बच्चे सही तरीके से परीक्षा की तैयारी नहीं कर पाते हैं। इस कारण प्रतियोगी परीक्षाओं में उन्हें दूसरे जिलों के छात्रों से कड़ी प्रतियोगिता का सामना करना पड़ता था इससे उनका नुकसान होता था। भाजपा सरकार में झारखंड राज्य के आदिवासियों व मूलनिवासियों के हितों का ध्यान रखते हुए अधिसूचना संख्या 5939 दिनांक 14.07.2016 के द्वारा नियोजन नीति को लागू किया और वर्ग तीन तथा चार के पदों को झारखंड के निवासियों के लिए शत प्रतिशत आरक्षित किया। इसका नतीजा हुआ की वर्ष 2016 के बाद राज्य में हुई वर्ग तीन तथा चार की सभी नियुक्तियों में स्थानीय निवासियों को शत प्रतिशत लाभ मिला। हमारी सरकार के पूरे कार्यकाल में नियोजन नीति व उसके अनुरूप की गयी नियुक्तियों का पूरा ध्यान रखा गया। न्यायालयों में भी हमारी सरकार ने सही तरीके से पक्ष रखा।
क्या यह नहीं माना जाना चाहिए कि झामुमो-कांग्रेस सरकार की शुरू से ही यह मंशा थी कि हमारी सरकार के समय हुई सारी नियुक्तियां और राज्य की नियोजन नीति विवादित रहे। राज्य के निवासियों को इसका लाभ न मिले और वे पहले की तरह इसका राजनीतिक लाभ लेते रहें।
एक साल में पांच लाख नौकरी देने के वादे के साथ सत्ता में आयी नयी सरकार के गठन के बाद से राज्य की नियोजन नीति एवं राज्य में हुई नियुक्तियों के संबंध में झामुमो-कांग्रेस सरकार ने कितनी गंभीरता दिखाई है, वह स्पष्ट रूप से दिख रहा है।
क्या वर्तमान झामुमो कांग्रेस सरकार के संज्ञान में यह विषय नहीं था कि राज्य के वर्तमान महाधिवक्ता श्री राजीव रंजन के द्वारा ही वर्ष 2002 में तत्कालीन स्थानीय नीति, जो 1932 खतियान के आधार पर निर्धारित की गई थी, के विरुद्ध बहस की गई थी और माननीय न्यायालय ने उसे रद्द कर दिया था। झामुमो के द्वारा इनके चुनावी घोषणा पत्र में कहा गया है कि वे झारखंड राज्य में सभी वर्गों की नियुक्ति में राज्य के मूल निवासियों को 1932 के खतियान के आधार पर शत प्रतिशत आरक्षण सुनिश्चित करेंगे। परंतु प्रश्न यह है कि अब तक लगभग 10 माह गुजर जाने के बाद भी झामुमो खबर सरकार ने उक्त विषय पर क्या किया है। जाहिर है कि वर्तमान सरकार निर्धारित नीति और उस आधार पर की गई स्थानीय निवासियों के नियुक्ति को बचाने में असफल रही, वह अपने घोषणा पत्र और 1932 के खतियान के आधार पर शत-प्रतिशत नियुक्तियों को आरक्षित करने के लिए क्या कार्रवाई करेगी।
उन्होंने कहा कि झामुमो कांग्रेस सरकार यदि वास्तव में झारखंड के स्थानीय निवासियों के हित की रक्षा चाहती है, तो उसे लंबित नियुक्तियों के संबंध में तत्काल कार्रवाई करनी होगी और पूर्व से की गई नियुक्ति और कार्यरत झारखंडवासियों को हटाने के बजाय माननीय सर्वोच्च न्यायालय में अपील कर अपना पक्ष मजबूती के साथ रखना होगा।

वर्तमान सरकार की मंशा अगर सही रहती तो, आज सहायक पुलिसकर्मी आंदोलन के लिए मजबूर नहीं होते। हमारी सरकार को दोष इतना ही था कि हमने स्थानीय युवाओं के भविष्य के बारे में सोचा। नीतियां बनायीं, उन्हें लागू किया। नक्सली युवाओं को बहका न लें, इसका प्रयास किया। उन्हें स्थानीय स्तर पर नौकरी दी।

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