जमशेदपुर: सऊदी अरब की साहित्यिक संस्था “काविश” तथा उर्दू विभाग करीम सिटी कॉलेज के संयुक्त तत्वाधान में विगत संध्या करीम सिटी कॉलेज के ऑडिटोरियम में एक यादगार सभा आयोजित की गई जिसमें मुख्य अतिथि के रूप में अरकान जैन यूनिवर्सिटी के कुलपति डॉ सैयद सफदर रजी, मनसूर अली साहब तथा फैज अकरम सिद्दीकी उपस्थित हुए। कॉलेज के प्राचार्य डॉ मोहम्मद रियाज ने अतिथियों का स्वागत किया। कार्यक्रम दो भागों में बटा हुआ था पहले भाग में प्रोफेसर सय्यद अहमद शमीम की अध्यक्षता में पुस्तक का विमोचन हुआ विमोचन असलम भद्र के नाती पोतों के हाथों संपन्न हुआ और उसके बाद पुस्तक तथा लेखक पर अपने विचार प्रोफेसर अहमद बद्र तथा प्रोफेसर सय्यद अहमद शमीम ने प्रस्तुत किए। कोलकाता के साहित्यकार अबू जर हाशमी का लेख प्रोफेसर गौहर अजीज ने सभा के सामने पढ़कर सुनाया। सभा के दूसरे भाग में शानदार मुशायरा आयोजित हुआ जिसमें शहर और शहर से बाहर से आए हुए 18 शायरों ने अपनी रचनाएं प्रस्तुत की। मुशायरे की सदारत सैयद सफदर रजी साहब ने की और संचालन अरशद मुहसनी ने किया। मुशायरे में जिन शायरों ने अपने कलाम पेश किए उनमें संजय सोलोमन, जफर इकबाल रहमानी, अंकिता सिन्हा, इकबाल असलम, मुस्ताक अहजन, गौहर अजीज, अरशद मुहसनी, दिलशाद नजमी, मेहताब अनवर, बद्रे आलम खलिश, डॉक्टर अफसर काजमी, अनवर कमाल, अहमद बद्र, सैयद अहमद शमीम और असलम बद्र के नाम प्रमुख हैं। मुशायरे में पढ़ी गई गजलों के चंद अशआर इस प्रकार हैं। रिश्ते संभालना आसान नहीं है
अपनों से हारना आसान नहीं है (संजय सोलमन)
क्यों है आंगन की दीवारें ऊंची
किस तरह घर में उजाला जाए (राशिद मुंहसनी)
मैं दिया हूं कि रोशनी बांटूँ
तू हवा है तो आजमा न भई (इकबाल असलम)
सुरूर कैसा अभी एतदाल पर है अगर
हवा का क्या है अभी रुक बदल भी सकती है ( मुस्ताक अहजन)
आओ ना बैठो फिर यह मुलाकात हो ना हो
एक दूसरे के हाथों में फिर हाथ हो न हो (अनवर कमाल)
मेरे अजदाद ऐसे थे मेरे असलाफ वैसे थे
यह सब किस्से कहानी छोड़ो आईना देखो (अहमद बद्र)